12 June 2007

कहीं दूर जब दिन ढल जाये...

Sun Set

बुझने लगा है झीलों का पानी, पिघला है, शाम के सूरज का सोना।
कहाँ से थामूं रात की चादर, कहाँ से पकड़ूं धूप का कोना॥

Updated after Manya's Comment

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आँख को क्षितिज पर डूबता सूरज लाल दिखायी देता है।

 लेकिन कैमरा कहता है कि सूरज वैसा ही है, जैसा कि दोपहर मे होता है।

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९ जून २००७ को ८:३२ अपरान्ह पर 'चिवितानोवा आल्ता' से डूबते हुये सूरज पर दिखती रक्त्त वर्ण आभा

8 comments:

Udan Tashtari said...

सूरज तो वही है, बस दिशा और समय बदल गया है. सारा खेल तो समय और स्थान का ही है. सही समय में सही जगह पर न हों तो सब बदल जाता है. फोटो बहुत बढ़िया है. :)

Anonymous said...

यदि रोशनी की जो किरणों का फैलाव सीधे लेन्स पर पड़ रहा है वह न पड़ा होता तो तस्वीर देखने में वाकई बहुत अच्छी लगती। "अच्छी" और "बहुत अच्छी" में ऐसी छोटी-२ बातों का ही फर्क होता है। :)

RC Mishra said...

प्रमेन्द्र और गौरव आपका धन्यवाद।
आशीष जी, अच्छा किया आपने दूसरी नज़र मे मेरा हाथ देख लिया...टिप्पणी के लिये शुक्रिया।
समीर जी ज्ञान वर्धन और अच्छी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
अमित, कहाँ 'अच्छी - बहुत अच्छी' के चक्कर मे पड़ते हो, ये क्यो नही सोचते कि शाम के साढ़े आठ बजे, मैनुअल मोड मे शटर स्पीड 1/1000 सेकेंड रखकर, 100 ASA पर ये शॉट लेने का उद्देश्य क्या था :) ।

Anonymous said...

अमित, कहाँ 'अच्छी - बहुत अच्छी' के चक्कर मे पड़ते हो, ये क्यो नही सोचते कि शाम के साढ़े आठ बजे, मैनुअल मोड मे शटर स्पीड 1/1000 सेकेंड रखकर, 100 ASA पर ये शॉट लेने का उद्देश्य क्या था :) ।

हा हा हा!! :D ;)

ePandit said...

शानदार!

Gyan Dutt Pandey said...

यह तो सवेरा है मित्र!

RC Mishra said...

धन्यवद श्रीश,
पान्डेय जी, सवेरे का सूरज देखे कई-कई महीने निकल जाते हैं, पिछली बार अप्रैल मे देखा था। आपको प्रात:काल का आभास हुआ, मेरा उद्देश्य पूरा हुआ। धन्यवाद!
अमित, हंसते हुए यहाँ भी एक नज़र डाल लो.

Monika (Manya) said...

Just beautifullll!!!!!!.. really wondeful....

"Dhalne laga hai jheelon ka paani..
Pighala hai shama ke sooraj ka sona..
Kahaan se thamaoon raat ki chadar..
Kahana se pakadun dhoop ka kona.."
(Maachis film ke geet ki panktiyaan)